कहत कठिन, समुझत कठिन


गोस्वामी तुलसीदास ने अपने कालजयी प्रबंधकाव्य रामचरित मानस में मानव जीवन दर्शन के बारे में ठीक ही लिखा है- कहत कठिन, समुझत कठिन, साधत कठिन विवेक। होइ घुनाच्छर न्याय जौं पुनि हाइ चुना प्रत्यूह अनक।। अथात इस जावन म बहुत सा बात एसा होता है जिनका कहना सरल नहीं होता और उनको समझना भी कठिन होता है। अक्सर लोग कहते हैं कि आप मेरी समस्या को नहीं समझ पाएंगे।गोस्वामी तुलसीदास ने जिस समस्या का उल्लेख किया, उसका संबंध आत्मा का परमात्मा से मिलन अर्थात जीवन मत्य के बंधन से छटकारा पाने से है। जीवन और मृत्यु को तो सभी मानते हैं लेकिन उसके आगे-पीछे क्या होता है, इस पर एक राय नहीं है। इस मामले में कहना भी कठिन है और समझना की भी। बालीवुड की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण डिप्रेशन का शिकार रही हैं। डाक्टरों की मानें तो आज 80 फीसदी से ज्यादा लोग अवसाद अर्थात डिप्रेशन के शिकार हैं। कोई कम है तो कोई ज्यादा बहुत ज्यादा डिप्रेशन होने पर आत्महत्या अथवा दूसर का हत्या का नाबत आ जाता दूसरे की हत्या की नौबत आ जाती है। इस अवसाद से बचाने का दायित्व पूरे समाज का है। दीपिका पादुकोण यह दायित्व अपने तरह से निभा रही हैं। उन्होंने इस बारे में अगर कुछ कहा हैं तो वो सीधा और सरल नहीं है और उसे समझना तो और भी कठिन है। सुशांत राजपूत को लेकर दीपिका पादुकोण ने कुछ ऐसा ही कहा है। दीपिका पादुकोण ने सुशांत के निधन के बाद इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर की। इस पोस्ट में सुशांत के लिए न तो कोई श्रद्धांजलि थी और न ही उनका नाम। दीपिका का ये पोस्ट मेंटल हेल्थ को लेकर था। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा- एक ऐसे इंसान के तौर पर जिसने मेंटल इलनेस जैसी परेशानी को खुद झेला है, मैं लोगों तक पहुंचने की बात पर जितना जोर डालूं उतना कम है। बात करें, संवाद करें, जाहिर करें और मदद मांगें। याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं, हम सब इसमें आपके साथ हैं और सबसे जरूरी ये बात याद रखनी है कि उम्मीद बाकी है। बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को आत्महत्या कर ली। उनका शव मुंबई के बांद्रा स्थित उनके अपार्टमेंट में फंदे से लटकता हुआ मिला। महज 34 साल की उम्र में उनकी आत्महत्या की खबर किसी भयावह सपने की तरह हर किसी को महसूस हो रही है। कोई भी उनके द्वारा उठाए इस कदम पर भरोसा नहीं कर पा रहा है। जहां एक तरफसुशांत के फैंस अपने सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बॉलीवुड से जुड़े सेलेब्रिटीज सोशल म मीडिया के जरिए अपना दुख जाहिर कर रहे हैं लेकिन इस बीच एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण जबरदस्त सुर्खियों में आ गई हैं। इस पोस्ट का स्क्रीनशॉट लेकर सोशल मीडिया पर लोग दीपिका पादुकोण पर नाराज होते दिख रहे हैं। एक यूजर ने दीपिका के इस पोस्ट को लेकर कहा कि इस मौके पर भी उन्होंने अपने बारे में बात करनी थी, न कि अपने एनजीओ का प्रमोशन करना था? दीपिका की बात को समझना क्या इतना आसान था? जहां एक तरफकई लोगों ने दीपिका के इस पोस्ट पर नाराजगी जाहिर की है, वहीं कई लोग उनके सपोर्ट में भी आए है। उन्होंने दीपिका की कही हुई बातों की गंभीरता को समझते हुए उनकी तारीफकी है और उन्हें ट्रोल करने वाले लोगों की बातों को बकवास बताया है। इसी क्रम में अपने बेबाक विचारों के लिए चर्चित स्तम्भ कार दयाशंकर मिश्र भी खड़े दिखाई पड़ते हैं। दयाशंकर मिश्र कहते हैं हमें आत्महत्या के विरुद्ध होना है। उसके साथ नहीं दिखना। हमारी समस्या यह है कि हम जीवित व्यक्ति के साथ कभी समय पर खड़े नहीं होते, लेकिन मातम के वक्त समय पर पहुंच जाते हैं। बॉलीवुड का समाज पर गहरा असर पड़ता है। इनकी बातें नीचे तक बहुत तेजी से पहुंचती हैं। इसीलिए मैंने आपसे कहा कि सुशांत के साथ खड़े नहीं होना। सुशांत के साथ कोई सहानुभूति नहीं! आत्महत्या चुनाव नहीं है। यह मनुष्यता की अवहेलना है। भूल गए करोड़ों मजदूरों को जो कैसे-कैसे कष्ट सहते हुए, अटैची पर सोते बच्चे, पीठ और छाती से चिपके बच्चे लिए कैसे सफर पर हो। श्रद्धा और सहानुभूति इनके साथ होनी चाहिए, जिनके भीतर संघर्ष का रस जिंदा है, उनके साथ खड़े होना है! इसलिए, अपने बच्चों को इस नशे में उतरने से बचाइए। उन्हें आत्महत्या के प्रति सहृदय होने से रोकिए। हमारे आस पास बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनकी नौकरी जा रही है, जिनको काम नहीं मिल रहा, जिनके पति और पत्नी के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं, पटरी नहीं बैठ रही, उनको सुशांत की कहानी मत सुनाइए। यह सुनने में अटपटा लगता है। दयाशंकर मिश्र को कहने में भी कठिन लगा होगा और समझने में भी निश्चित रूप से आसान नहीं है। आप लोगों में से बहुतों ने टाइटैनिक फिल्म देखी होगी। जहाज समुद्र में डूबने लगता है। जहाज को बचाने का कोई तरीका नहीं लेकिन लोगों को बचाने का अवसर था। लाइफबोट पर लोगों को बैठाया गया। उस समय जो कहा जा रहा था, उस पर ध्यान दीजिए। नाव पर पहले बच्चे व महिलाओं को बैठाया जाए। ऐसा क्यों? जान तो सभी की बराबर है। सभी को जीने का अधिकार है लेकिन जान बचाने की प्राथमिकता के पीछे भाव को समझना जरूरी है। संसार के सभी प्राणी बंधन से बंधे हैं। नाते रिश्ते के बंधन, रोजी रोटी के बंधन, सामाजिकता के बंधन, शारीरिक मानसिक बंधन और सबसे बड़ा जीवन मृत्यु का बंधन। गोस्वामी तुलसीदास बंधन से मुक्ति के दो मार्ग बताते हैं- एक ज्ञान मार्ग और दूसरा भक्ति मार्ग। ज्ञान मार्ग के लिए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि मार्ग तो पवित्र है लेकिन बहुत कठिन है- ज्ञान का पंथ कृपान की धारा । ज्ञान दीपक जल जाने के बाद भी समस्याओं का अंत नहीं होता। कभी कभी बिना किसी प्रयास के काम बन जाता है, बिना किसी प्रयत्न के घटना का घटित होना ही घुनाच्छर न्याय है। यह सभी को नहीं मिलता। साधारण न्याय के लिए सबूत जुटाने पड़ते हैं अर्थात श्रम करना पड़ता है। शायद, कुछ ज्यादा। सुशांत राजपूत की मौत दुखद है लेकिन यह दुख किसी अन्य की जिन्दगी का अंत कर दे, यह दूसरों को समझाने की जरूरत है। इसी बात को दीपिका पादुकोण ने भी समझाने का प्रयास किया है। इस संदर्भ में बड़ी खबर बिहार के पूर्णिया से मिली है जहां अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की भाभी का निधन हो गया है। दो दिन पहले मुंबई में आत्महत्या करने वाले इस अभिनेता की चचेरी भाभी सधा देवी पहले से बीमार चल रही थीं लेकिन सुशांत के निधन के बाद वो गहरे सदमे में चली गई थीं और उनकी मौत हो गई। सुशांत के निधन के बाद से सदमें में चली गईं उनकी भाभी सुधा ने 15 जून की देर रात पूर्णिया के मलडीहा गांव जो कि सुशांत का पैतृक गांव भी है स्थित ससुराल में दम तोड़ दिया। इसकी पुष्टि उनके परिवार के लोगों ने भी की है। सुशांत की आत्महत्या के बाद से उनका पूरा परिवार गहरे सदमे में हैं। परिवार के साथ सुशांत के चाहने वाले भी दुखी हैं लेकिन अन्य लोगों को जीने की कलासीखनी होगी।(अशोक त्रिपाठी-हिफी)