सरस्वती पुत्र सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी एक कविता 'मौन में लिखा- बैठ लें कुछ देर, आओ एक पथ के पथिक से.... तो सहसा आधुनिक जीवन शैली की याद आ जाती है। जीवन में नीरसता हद को पार कर गयी है। एक ही परिवार में बैठे लोग एक-दूसरे से अनजान से बैठे रहते हैं। कविवर निराला ने ही सरस्वती वंदना 'वीणा वादिनी वर दे... की रचना की थी जो आज भी किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत में मां भारती की आराधना में सस्वर गायी जाती है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिन्दी के छायावादी युग के एक सशक्त हस्ताक्षर है। छायावादी कवियों में सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को ही प्रमुख माना जाता है। छायावाद से संबध्ंा रखने के बावजूद निराला की कविताएं यथार्थ के अधिक निकट हैं। वह तोड़ती पत्थर, इलाहाबाद के पथ पर अथवा भिखारी का चित्रण करते हुए लिखी गयी कविता 'वह आता, दो टूक कलेजे के करता। पेट और पीठ दोनों हैं मिलकर एक, चल रहा लकुटिया टेक.... जैसी कविताओं में समाज का यथार्थ है। निराला ने परिमल और राम की शक्ति पूजा जैसी कविताओं में साहित्य का उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत किया है। निराला का जन्म पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में 21 फरवरी 1896 को हुआ था। उस दिन बसंत पंचमी थी। इसलिए मां सरस्वती के इस बेटे का जन्म बसंत पंचमी को ही मनाया जाता है। महाप्राण निराला 15 अक्टूबर 1961 को सदा-सदा के लिए इस दुनिया को छोड़कर चले गये। निराला के पिता पंडित राम सहाय तिवारी गढाकोला (उन्नाव) के रहने वाले थे। वह महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। निराला की औपचारिक शिक्षा हाईस्कूल तक ही हुई। इसके बाद हिन्दी, संस्कृत तथा बांग्ला का अध्ययन घर पर ही किया। तीन वर्ष की उम्र में ही उनकी मां का स्वर्गवास हो गया था और युवा होने तक उनके पिता भी साथ छोड़ गये। प्रथम विश्व युद्ध के बाद फैली महामारी में अपनी पत्नी मनोहरा देवी, चाचा, भाई तथा भाभी को खो दिया। विषम परिस्थितियों में भी निराला ने कभी समझौता नहीं किया और अपने तरीके से जीवन जीते रहे। प्रयागराज (इलाहाबाद) से उनका विशेष लगाव रहा और यहां के दारागंज मोहल्ले में अपने एक मित्र रामसहाय के घर के पीछे बने एक कमरे में 15 अक्टूबर 1971 को अंतिम सांस ली थी।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला की जीवन शैली भी निराली थी। बताते हैं एक बार वह कहीं जा रहे थे। तभी एक भिखारिन ने उनसे कहा 'बेटा कुछ पैसे दो दो। निराला ने सुना और उनकी जेब में जितने रुपये थे, सभी उस भिखारिन को देते हुए कहा 'माँ, ये रुपये लो और अब भीख नहीं मांगना क्योंकि मैं नहीं चाहता कि कोई यह कहे निराला की माँ भीख मांगती है...। इस तरह की कितनी ही कहानियां हैं। उनकी धर्म की बहन महान कवयित्री महादेवी वर्मा ने कई संस्मरण उनके बारे में लिखे थे। महादेवी वर्मा बताती हैं कि 'उस दिन बिना कुछ सोचे ही भाई निराला जी से पूछ बैठी थीं 'आपके किसी ने राखी नहीं बांधी। निराला ने जो जवाब दिया था, उससे महादेवी वर्मा अंदर तक सिहर गयी थीं। निराला जी ने कहा 'कौन बहन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाएगी।Ó यह महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की फाकेमस्ती का उदाहरण तो है ही, साथ ही यह भी साबित होता है कि रक्षाबंधन जैसे त्योहार भी भावनात्मक से ज्यादा भौतिकवाद के शिकार तभी से होने लगे थे। इस निराले कवि को व्यवस्थित करने का प्रयास भी महादेवी वर्मा ने किया था। बताते हैं कि एक बार महादेवी वर्मा ने निराला जी के लिए बजट बनाया कि किस तरह वह खर्चा-पानी करेंगे। निराला जी को कहीं से तीन सौ रुपये मिले थे और बजट का मूलधन महादेवी वर्मा ने अपने पास रख लिया। निराला जी भी बजट को सुनकर बहुत खुश हुए थे और वादा किया कि इसी पर अमल करेंगे। दूसरे दिन ही उनका फक्कड़ी स्वभाव महादेवी वर्मा को दिखाई पड़ गया। निराला जी सवेरे-सवेरे महादेवी जी के पास पहुंचे और कहने लगे एक छात्र को फीस के लिए पचास रुपये देने हैं। परीक्षा शुल्क न जमा किया तो वह परीक्षा ही नहीं दे पाएगा। इसी प्रकार का दान कार्य शाम तक चलता रहा। एक साहित्यिक मित्र को 60 रुपये की आवश्यकता थी और निराला कभी इनकार नहीं कर सकते थे। दिवंगत मित्र की भतीजी की शादी में सौ रुपये दिये तो लखनऊ के एक तांगेवाले की माँ को 40 रुपये मनी आर्डर करके भेज दिये। महादेवी जी इनकार नहीं कर पायीं। इस प्रकार निराला जी का घरेलू बजट पूरे महीने का जो बना था, वो एक ही दिन में खर्च हो गया। ऐसे अवढरदानी थे सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला। आतिथ्य सत्कार उन्हें भरपूर आता था। राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त जैसे लोग भी उनके अतिथि बनकर इलाहाबाद के उस छोटे से कमरे में रहे, जहां निराला साहित्य साधना किया करते थे। निराला का जितना विशाल आकार था, उससे कहीं ज्याद बड़ी उनके अंदर की आत्मीयता थी। इसी की झलक उनकी कविताओं में भी दिखती है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य संग्रह में- अनामिका, परिमल, गीतिका, द्वितीय अनामिका, तुलसीदास (प्रबंध काव्य), कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली, जन्मभूमि, अपरा, दो शरण, राम बिराग हैं। खण्ड काव्य के रूप में सबसे चर्चित राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति और बादल राग हैं। निराला ने कई उपन्यास भी लिखे हैं। इनमें अप्सरा, अलका, निरुपमा, प्रभावती, चमेली, चोरी की पकड़, दीवानों की हस्ती और उच्छृंखलता शामिल हैं। निराला के चार उपन्यास अधूरे रह गये थें ये उपन्यास थे चमेली, चोरी की पकड़, काले कारनामे और इन्दुलेखा। उन्होंने पुराणकथा में महाभारत भी लिखी है। निराला ने आनंद मठ, कृष्णकांत का बिल, दुर्गेश नंदिनी, देवी चौधरानी जैसे बांग्ला उपन्यासों का हिन्दी में अनुवाद भी किया था। महाकवि निराला के साहित्य की कई लेखकों ने समीक्षा भी की है। इनमें राम विलास शर्मा की निराला की साहित्य साधना में उनका सटीक मूल्यांकन दिखता है। हालांकि कवि अपना स्वत: मूल्यांकन भी कर लेता है। गोस्वामी तुलसीदास ने जैसे अपने अल्पज्ञान के लिए लोगों से क्षमा मांगी और साफ-साफ कहा कि हमने यह रामचरित मानस स्वान्त: सुखाय लिखा है, इसके बाद भी जो मेरी रचना पर आशंका करेंगे वे मुझसे भी अधिक बुद्धि के रंक हैं। इस तरह निराला ने भी 'सरोज स्मृति में लिखा-
मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूं आज जो नहीं कही।
(अचिता-हिफी)
बैठ लें, कुछ देर आओ, एक पथ के पथिक से