उत्तर प्रदेश में प्रयागराज को सभी तीर्थोंं का राजा कहा जाता है। यहीं पर आनंद भवन से स्वतंत्रता की अलख जगायी गयी थी। पूरब का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश को कितने ही स्वनामधन्य नेता दे चुका है आईएएस अफसरों की उर्वर भूमि यही विश्वविद्यालय है। यहां के छात्र अब प्रवासी भारतीयों पर शोध करेंगे कि उन लोगों ने कैसे अन्य देशोंं में अपना ठौर ही नहीं बनाया बल्कि वहां विकास पुरुष भी बन गये। इन लोगों ने गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस की इस चौपाई को चरितार्थ किया है।
जहां बसहु, तहं सुन्दर देसू, जो प्रतिपालहिं सोइ नरेसू।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो- योगेश्वर तिवारी ने गत दिनों कहा कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारे देश से दूसरे देश में गये लोग वहां आदर्श बन गये जबकि हमारे यहां के लोगों को आदर्श सिखाने के लिए कड़े से कड़े कानून बनाने पड़ रहे हैं। यातायात के नियमों का कठोर बनाना इसका एक उदाहरण हैं स्कूलों में शिक्षक अपने दायित्व को ठीक से निभाएं, इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक विशेष ऐप बनाना पड़ा है। दफ्तरों में मशीनेें हाजिरी लेती हैं। एक तरह से अविश्वास का वातावरण बढ़ रहा है जबकि भौतिक रूप से हम ज्यादा समृद्ध हो चुके हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो- योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि बड़ी संख्या में भारतीय मॉरीशस सूरीनाम, कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मलयेशिया, म्यांमार ओर ब्रिटेन में जाकर बस गये हैं। शोध छात्र इसके बारे में जानकारी एकत्र करेंगे कि वे कब, कहां और क्यों गये? वहां जाने के बाद कैसे खुद को स्थापित किया और साथ ही भारतीय परम्पराओं को भी आत्मसात किये रखा। प्रवासी भारतीयों के बारे में जानकारी देने के लिए कुलपति प्रो- आरएल होगलू की पहल पर सेन्टर आफ डायस्पोरा स्टडीज खोला गया है, जिसका कोआर्डिनेटर प्रो- योगेश्वर तिवारी को बनाया गया है। श्री होगलू ने प्रवासी भरतीयों पर 'इंडियन डायस्पोरा इन द कैरिेबियनÓ नाम से पुस्तक लिखी है। कई और विद्वानों की भारतीयों पर लिखी किताओं को छात्र अपने शोध का आधार बना सकेंगे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रवासी भारतीयों के बारे में कौन सी नयी जानकारी मिलती है, यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन यह सच्चाई तो सभी के सामने है कि जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे, वहां उन्होंने आर्थिक तंत्र को मजबूत किया है। भारत से जाकर बहुत कम समय में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। वे मजदूर, व्यापारी, शिक्षक, अनुसंधानकर्ता, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में दुनिया भर में स्वीकार किये गये हैं। कई देशों में वहां के मूल निवासियों की अपेक्षा भारतवंशियों की प्रति व्यक्ति आय भी ज्यदा है। वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति लाने की कोशिश भी इन्हीं प्रवासी भारतीयों ने की है। इसके चलते विदेशों में भारत की छवि निखरी है। भारत आज विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है तो इसके पीछे भी प्रवासी भारतीयों का हाथ रहा है। मॉरीशस के प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ भी एक प्रवासी भारतीय हैं। अमेरिका में भी डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार में भारतीय मूल के लोग महत्वपूर्ण दायित्व निभा रहे हैं। मॉरीशस के प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ अक्सर भारत आते हैं। उनके नेतृत्व में एक दल प्रयाग के कुंभ मेले में भी आया था और संगम में आस्था की डुबकी लगायी थी। अपनी संस्कृति और आस्था को वे लोग आज भी नहीं भूले हैं। मॉरीशस में बहुत पहले गिटपिटिया मजदूरों का दल गया था। बताते हैं उनकी पोटली में कुछ कपड़े, खाने का सामान और रामचरित मानस की एक प्रति भी थी। इस रामचरित मानस ने उनको संस्कार दिया और रामचरित मानस के बारे में परिवार से शिक्षा मिली। इसी शिक्षा ने प्रवासी भारतीयों को भारत की संस्कृति और आस्था से जोड़कर रखा है। वे विभिन्न देशों में रहते हैं, अलग भाषा बोलते हैं लेकिन वहां के क्रिया-कलापों में ईमानदारी से अपनी भूमिका भी निभाते हैं। प्रवासी भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के कारण ही साझा पहचान मिली है। भारतीय प्रवासी उन देशों की आर्थिक एवं राजनीतिक दशा तथा दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस प्रकार विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की सफलता के पीछे दो कारण स्पष्ट नजर आते हैं। पहला कारण है हमारे अपने देश की संस्कृति और सभ्यता को उन्होंने समझने का प्रयास अपने-अपने स्तर से किया। रामचरित मानस सामान्य जनों को भी शिक्षा देने में सक्षम है और बिहार के गिटपिटिया मजदूर इसीलिए उसकी प्रति अपने साथ ले गये थे। उसमें यह भी लिखा था- 'जहां बसहु तहं सुन्दर देसू, जो प्रतिपालहिं सोइ नरेसू।Ó इसलिए वे भारत से जब गये तो उसी देश को सुन्दर देश समझा। मॉरीशस के प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ ने यह बात भारत दौरे के समय बतायी थी। आज हम अपने इन ग्रंथों के बारे में बात करना भी पसंद नहीं करते हैं। हमारे बीच मोबाइल आ चुका है। घर में पास-पास बैठे लोग भी एक-दूसरे से कोसों दूर नजर आते हैं। कोई कुछ देख रहा होता है तो कोई कुछ। बड़ों की बात तो छोडि़ए, बच्चों तक को अपने अभिभावकों से बात करने की इच्छा नहीं होती है, अगर उनके हाथ में मोबाइल आ गया है। बच्चों मेें यह बीमारी भी परिवार के सदस्य ही पैदा करते हैं। यह संक्रामक बीमारी जैसी भी है क्योंकि पड़ोस का बच्चा अगर मोबाइल पर गेम खेलता है तो आपका बच्चा भी इसके लिए जिद करेगा। बच्चों को अच्छी पुस्तकें पढऩे की प्रेरणा देने की फुर्सत किसी के पास नहीं रह गयी है। इस प्रकार प्रवासी भारतीयों की तरक्की का दूसरा कारण उन्हें परिवार से मिले संस्कार और शिक्षा रहा है। रामायण काल की बात करें तो भगवान राम जब वनवास के लिए जाने लगे और उनके साथ सीता भी जा रही थीं तो लक्ष्मण को उनकी माता सुमित्रा यही शिक्षा दे रही थीं कि वन में अपने बड़े भाई राम को पिता और सीता भाभी को माता के समान समझना। प्रवासी भारतीयों को भी यही शिक्षा मिली थी कि आपस में हिल मिलकर रहना। आज न तो ज्ञानवद्र्धक पुस्तकें पढ़ी जाती हैं और न परिवार में ज्ञानवद्र्धक शिक्षा दी जाती है। संयुक्त परिवार के टूटने से भी यह समस्या बनी है। समस्या जब विकराल हो जाती है तब कठोरता का सहारा लेना पड़ता है। मौजूदा समय में यातायात के नियमों को कठोर बनाने की जरूरत इसीलिए पड़ी है। वाहन चलाते समय दोपहिया वाहन चालकों को हेल्मेट और चार पहिया वाहन चालकों को सीट बेल्ट लगाने की आदत ही खत्म हो गयी थी। ट्रैफिक सिगनल लगे हैं लेकिन वहां ट्रैफिक सिपाही न खड़ा हो तो लोग दाएं-बाएं चलने से गुरेज नहीं करेंगे। रेलवे क्रासिंग पर भी देर तक जाम इसीलिए रहता है कि दोनों तरफ लोग वाहन लेकर खड़े हो जाते हैं। हमारे परिवारों में बच्चों को कभी कड़ाई से यह शिक्षा नहीं दी गयी कि यातायात नियमों का पालन करें। इसलिए आज कड़े नियम बने हैं तो लोगों को परेशानी भी हो रही है। यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। हम अच्छी बातें कैसे सीखें, इसके लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। हमारी भारतीय संस्कृति से दूसरों ने सीखा है प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के योग को विश्व भर में पहुंचा दिया है। वैदिक ज्ञान से जर्मनी ने बहुत तरक्की की है। इसलिए प्रवासी भारतीयों से भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र शोध करके कुछ और ज्ञान वृद्धि करेंगे। (अशोक त्रिपाठी-हिफी)
जहां बसहु, तहं सुन्दर देसू...